Anu koundal

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वह है आम आदमी

कोई गीत बेच रहा,
कोई संगीत बेच रहा,
वह है आम आदमी,
जो कड़ी धूप में,
खिलते हुए फूल बेच रहा।

इक्कीसवीं इस सदी में,
कोई पराधीनता के लिए,
हर सीमा लांघ रहा।
बीच चौराहे पर बैठा,
कोई भीख मांग रहा।
वह है आदमी
जो  कठिनाईयों को अपनी,
बांग बना रहा।
मुसीबतों में भी हर त्योहार मना रहा।

सादगी से अपनी,
कोई दिलों में छा रहा।
मां के पास बैठ ,
कोई महफिलें जमा रहा।
यहां हंसकर,
वहां रोकर,
आज हर कोई अपना किरदार निभा रहा।
वह है आम आदमी ,
जो एक समय की रोटी के लिए,
दिन रात पसीना बहा रहा।
वह है आम आदमी,
जो सिक्के की कीमत समझा रहा।
वह है आम आदमी..........।


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Mar-2022 04:48 PM

बहुत खूबसूरत

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The traveller

11-Mar-2022 04:45 PM

Nicely written

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